राज्य स्तरीय खेल: चाईबासा के DAV स्कूल में विजेताओं का सम्मान

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चाईबासा के DAV स्कूल में राज्यस्तरीय प्रतिभाओं का सम्मान

चाईबासा के सुरजमल्ल जैन DAV पब्लिक स्कूल का सभागार तालियों से गूंज उठा, जब राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले छात्रों को सम्मानित किया गया। यह सिर्फ एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि उन मेहनत, पसीने और निरंतर अभ्यास के घंटों की पहचान थी, जिसने इन बच्चों को भीड़ से अलग किया। स्कूल प्रशासन ने साफ बताया कि पढ़ाई और खेल दोनों साथ-साथ चलेंगे और इसी संतुलन से बच्चे आगे बढ़ेंगे।

सम्मान समारोह में प्रिंसिपल ओम प्रकाश मिश्रा ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि खेल बच्चों के व्यक्तित्व को गढ़ते हैं। उनके मुताबिक, मैदान में सीखे गए अनुशासन, टीमवर्क और धैर्य की सीख कक्षा में भी काम आती है। जब बच्चे प्रतिस्पर्धा के दबाव में शांत रहना सीखते हैं, तो वे पढ़ाई में भी बेहतर ध्यान लगा पाते हैं। स्कूल का जोर है कि राज्य स्तरीय खेल में भागीदारी का मतलब सिर्फ मेडल नहीं, बल्कि जीवन कौशल हासिल करना भी है।

समारोह में उन छात्रों की उपलब्धियों को सराहा गया, जिन्होंने विभिन्न विधाओं में राज्य स्तर तक पहुंचकर अपनी क्षमता दिखाई। छात्रों को स्टेज पर बुलाकर सम्मानित किया गया और उनके प्रयासों पर खुले दिल से बधाइयां दी गईं। यह वह पल था, जहां मेहनत को पहचान मिली और बाकी बच्चों के लिए एक साफ संदेश गया—लगातार अभ्यास और सही मार्गदर्शन से लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है।

खेल शिक्षकों जयप्रकाश और अर्जुन महाकुद की भूमिका पूरे कार्यक्रम के केंद्र में रही। दोनों ने छात्रों को तैयार करने में बुनियादी फिटनेस, कौशल की बारीकियों और मानसिक मजबूती पर मेहनत कराई। तैयारी का फोकस सिर्फ जीत पर नहीं, बल्कि सही तकनीक और स्पोर्ट्समैनशिप पर था। यही वजह रही कि बच्चे बड़े मंच पर घबराए नहीं, बल्कि अपनी लय में खेलते दिखे।

स्कूल समुदाय—छात्र, शिक्षक और प्रबंधन—ने इस सम्मान को एक नई शुरुआत की तरह देखा। पुरस्कार मंच तक पहुंचने की यह कहानी बाकी बच्चों के लिए प्रेरक उदाहरण बनी। कई छात्र अब ट्रायल्स और इंटर-स्कूल मुकाबलों को लेकर ज्यादा गंभीर दिख रहे हैं। स्कूल का मानना है कि जब बच्चों को सही माहौल और प्रोत्साहन मिलता है, तो वे संसाधनों की सीमाओं के बावजूद भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

खेल क्यों जरूरी, और आगे की राह

NEP 2020 भी कहती है कि खेल शिक्षा का हिस्सा है, अलग विषय नहीं। खेल से बच्चों में फोकस बढ़ता है, नींद बेहतर होती है और तनाव कम होता है। आज के समय में स्क्रीन टाइम बढ़ने से शारीरिक गतिविधि का महत्व और बढ़ गया है। मैदान पर पसीना बहाना बच्चों को समय प्रबंधन और जिम्मेदारी समझना सिखाता है—ये वही चीजें हैं जो आगे कॉलेज, नौकरियों और जीवन में काम आती हैं।

स्कूल खेल से बच्चों को क्या मिलता है, इसे कुछ सीधे बिंदुओं में समझें:

  • अनुशासन और समय पालन: रोज अभ्यास का मतलब तय रूटीन और लक्ष्य पर फोकस।
  • टीमवर्क और लीडरशिप: साथियों के साथ खेलना संवाद और नेतृत्व दोनों सिखाता है।
  • धैर्य और रेज़िलिएंस: हार के बाद भी वापस उठना और अगले मैच में बेहतर करना।
  • स्वस्थ शरीर, स्पष्ट दिमाग: फिटनेस से ऊर्जा बढ़ती है और पढ़ाई में एकाग्रता आती है।

राज्य स्तर की प्रतिस्पर्धा आसान नहीं होती। कई राउंड के बाद ही जगह बनती है और छोटे-छोटे फैसलों पर मैच का रुख बदलता है। ऐसे में स्कूल के कोच, फिटनेस पर काम, और बच्चों का मानसिक संतुलन निर्णायक बनता है। यहां परिवार का सहयोग भी मायने रखता है—अभ्यास का समय, सही खान-पान और आराम का ख्याल, ये सब मैदान के प्रदर्शन में सीधे दिखते हैं।

चाईबासा और आसपास के इलाकों में स्कूल खेलों के लिए हाल के वर्षों में दिलचस्पी बढ़ी है। स्थानीय टूर्नामेंटों से बच्चों को मैच प्रैक्टिस मिलती है और वहीं से जिला व राज्य स्तर की राह खुलती है। इस सम्मान समारोह ने उस सिलसिले को और ताकत दी है। जो बच्चे अभी शुरुआत कर रहे हैं, उनके लिए यह स्पष्ट संकेत है—मूलभूत फिटनेस पर ध्यान दें, कोच की बात सुनें, और हर मुकाबले को सीख की तरह लें।

सुरजमल्ल जैन DAV पब्लिक स्कूल का संदेश साफ है—खेल कोई ‘एक दिन’ का कार्यक्रम नहीं, बल्कि स्कूल संस्कृति का हिस्सा है। सम्मान के बाद बच्चे और शिक्षक, दोनों, अगले सत्र की तैयारियों को लेकर उत्साहित हैं। लक्ष्य सिर्फ ट्रॉफियां नहीं, बल्कि ऐसे खिलाड़ी तैयार करना है जो मंच कोई भी हो, दबाव में स्थिर रहें और खेल की मर्यादा बनाए रखें। यही रवैया उन्हें लंबी दौड़ में आगे ले जाएगा।